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मृदंग ॥ करी करी तिहां कंठताल, चउताल ताल कंसाल ॥ १७ ॥ शंख पणव मुंगल नेरी, जबरी वीणा नफेरी ॥ एक करे हयदेषा, एक करे गज लकार ॥ १५ ॥ ढाल ॥ गुलकार गर्जनारव करे ए ॥ पाय पूर. पूर धुर धुर धरे ए ॥२०॥ चाल ॥हां रे सुर धरे श्रधिक बहु मान, तिहां करे नव नव तान ॥ वर विविध जाति बंद, जिननक्ति सुरतरुकंद॥ १॥वली करे मंगल आउ, ए जंबूपन्नत्ति
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