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ए, अमबुद्धि दातार ॥ नवि० ॥१॥ अडदिहि पण पामीए ए, पूजथी नवि श्रीकार ॥ ज० ॥ अनुक्रमे अष्ट करम हणी ए, पंचमी गति लहो सार ॥ ज० ॥२॥ शा न्हानासुत सुंदरु ए, विनयादिक गुणवंत ॥ न० ॥ शाह जीवणना कहेणथी ए, कीयो अन्यास ए संत ॥ ॥३॥ सकल पंमित शिर सेहरो ए, श्रीविनीतविजय गुरुराय ॥ ज० ॥ तास चरणसेवा थकी ए, देवनां वंडित थाय ॥ ज०॥४॥
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