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री॥श्ररि ॥२॥ पवित्र थश जिनमंदिर जश्ने, आशय शुद्ध करीजे री॥ धूप प्रगट वामांगे धरता, जव जव पाप हरीजे री ॥श्ररि ॥ ३ ॥ समतारस सागर गुण श्रागर, परमातम जिन पूरा री॥ चिदानंदघन चिन्मय मूरति, जगमग ज्योति सनूरारी ॥अरि ॥४॥ एहवा प्रजुने धूप करंतां, अविचल सुखमां लहीए री ॥ इह जव परजव संपत्ति पामे, जेम विनयंधर कहीए री ॥श्ररि॥५॥
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