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टले, प्रगटे आत्मखनाव ॥१॥ जे जन षट् शतु फूलशें, जिन पूजे त्रण काल ॥ सुर नर शिवसुख संपदा, पामे ते सुरसाल ॥२॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ साहेल
मीयांनी ॥ देशी॥ ॥ कुसुमपूजा नवि तुमे करो। साहेलमीयां ॥ श्राणी विविध प्रकार ॥ गुण वेलमीयां ॥ जाइ जूई केतकी ॥ सा ॥ दमणो मरुः सार ॥ गु० ॥१॥ मोघरो चंपक मालती ॥ सा ॥ पामल पद्म ने
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