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समग्गलोगग्ग पयचसिदे, काएद निश्चपि समग्गसिदे ॥ २ ॥ ॥ श्रीश्राचार्यपदकाव्यम् ॥ ॥ सुतच्च संवेगमयं सुए, संनी रखीरामय विसुएणं ॥ पी नंति जे ते नवनायराए, फाएद निचंपि कयप्पसाए ॥ ३ ॥ ॥ श्रीउपाध्यायपदकाव्यम् ॥ ॥ ननं सुदं नहि पीया न माया, जे दंति जिवान्दिसूरीसपाया ॥ तदाहु ते चैव सया
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