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(६६) पाए०॥ चार वहू पाये पडी, सासु दे आशीपो रे।। अविचल जोडी तुम तणी, फलज्यो पाश जगीशोरे ॥ए। ए०॥ मात पिता हर्षित थयां, हो सहु परिवारो रे। राय करे अनुमोदना, ऐ ऐपुण्य अपारो रे॥१०॥ ए॥ पुत्र गयो भयो एकलो, ए शाह संपद पामीरेनवनिधि जिहां जावे तिहां, शा पुरुषा अनुगामीरे ॥ ११ ॥ ए७ ॥ उत्तम चरित्र कुमारने, शुन्न महरत शुन दीसे रे ।। मकरध्वज नृ पस्वदथें, दीधुं राज्य जगीशे रे ॥१२॥ ए ॥ राज्य करो सुत ए तुर्म, अमें इवे संयम लीजें रे ॥ चोयो प्राश्रम प्राधियो, आतम साधन कीजे रे ॥ १३ ॥ ए०॥ ले सहुनी आज्ञा, व्रत लीधुं नूपालो रे।। काहे जिनहर्ष उल्लाह, सनावीशमी ढालो रे ॥रभा ए॥सर्वगाया ॥ एव।।
॥दोहा ।। चारे राज्य स्वामी अयो, उत्तमचरित्र नरि ॥ पूरव पुण्य, पसानलें, दिन दिन अधिक प्राणं द॥१॥ चारे अपर सारिखी, चारे चतुर सजा स। चारे नारी पतिव्रता, चारे माने आण ॥२॥ चालीश खद अश्व जेहनें, चालीशासक गजहोड।
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