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________________ (भए ) लवीशमी, शुक बोल्यो एणिपोरं जर रे ॥ १०॥ सर्वगाथा ॥ ४०१॥ ॥दोहा॥ । स्वस्ति दून महाराज तुज, में पाम्युं सहु राज। निरपराध मुज जाग दे, नहीं राज्यशुं काज ॥१॥ लान थयो इहां एटलो, गलशोषण जे काय ॥ पोक न खाधो कर बच्या, घरना चूक्या घाय ॥२॥वैद्य नणी कल्याण हुन, दाक्षिण्य मूकी जेय । पहिला धन ले पढ़ें, गोली औषध देय ॥३॥दाक्षिण्य मेल्ही नवि शक्यो, हुं मूरख शिरताज ॥ सर्व कथा कहीने प, मागण लाग्यो राज ॥४॥ सांजल शुक राजा कहे, पूरण रोग न जाय ॥ वैद्य कडं धन नविल हे, तुं केम राज लदाय ॥ ५॥ ते अरधी कही वार ता, पूरो न कह्यो नेद ॥ मूढ नतावल कां करे, श्रा शे सफल नमेद ॥ ६ ॥ अनंगसेना गृह जाश्ने, कु मर निहाली आज ॥ कथा सुणीसह पागली, तुजने देश राज ॥७॥ चलु जेवारें आवियुं, जमणनी नांगी पाश ॥ तेम तुम वचन प्रतीत बे, बेसो क्षण आवास ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005373
Book TitleVastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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