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( ४३ ) हाराजा इहां आवशे, पुत्री जेहने परणावशे ॥२॥ ॥पुणा राय विचारे एह चित्त, धन्य धन्य एह महे श्वरदत्त । पु०॥ एहवी लक्ष्मीनो जे धणी, वैराग्य ते हने अवगणी ॥ ३ ॥ पु०॥ देश जमाश्ने घर सार, पोते लेशे संजम नार || पु० ॥ हुं पण त्रिलोचना जरतार, शुरू करी युं राजनंडार ॥॥ पु०॥ दीक्षा ले आतमकाज , सारं जेम पामुं शिवराज ॥पु०॥ महेश्वरदत्तशं कियो विचार, आपण पाशं दीक्षा धार ॥ ५॥ पु०॥ पडदो नगर फेराव्यो राय, परदेशीसे देशी थाय || पु०॥ त्रिलोचनावर निरति कहे, मदा लसा विरतंत जे लहे ॥६॥ पु०॥ तेहने राजा आप राज, सहस्रकला कन्या शिरताज ॥पु०॥ पडहो नगर निरंतर फरे, एहवां वचन मुखें नञ्चरे ॥ ७॥ पु०॥ मास एक हुन जेटले, पडद उब्यो पोपट तेटले ॥ ॥ पुण् ॥ सूडो कहे वचन तेणि वार, नो नो राज पुरुष अवधारणा पु०॥ लेजान मुज राज ज्वार, राय जमा कहुं विचार ॥ पु० ॥ मदालसा पतिनी कहुं शुद्धि, पूर्व वृत्तांत कहुं मुज बुदि॥ ए॥ पुण्॥ तुमने वात कहुं हुं आज, कन्या सहस्रकला लहुं रा ज॥ पु॥ पंखीनुं पण जाग्युं नाग्य, नहीतो मुज
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