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( ४० ) लस्युं रे, नाम सुणी दरख्यो ततकाल रे | पुण्य हुने तो ते मुजने मले रे, ए जिनदर्ष शोलमी ढाल रे ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ वली मनमांदे चिंतवे में फोगट धरयो राग ॥ किहां ते नारो मदालसा, रूपकला सोनाग ॥ १ ॥ स मुदत लेइ गयो, पापी मुजने नाखि ॥ जिहां होये तिहां जइ मलुं, पण दैव न दीधी पांख ॥ २ ॥ ए सु ख लीलासादेबी, ए नारी ए राज || पण नही नारी मदालसा, तो ए सुख कि काज ॥ ३ ॥ दश्डामां हे मदालसा, मुख न जगावे वात ॥ माले नारी त्रि लोचना, सुख विलसे दिन रात || ४ | सुख दुःख न कडे केहने, जे नर उत्तम होय ॥ संगतें नरम गमा "येवो, वाट न लेवे कोय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ श्रे लिकमन चरिज श्रयुं ॥ ए देशी ॥ ॥ ए अवसर तिहां सांजलो, आगल जे नपगारी रे । मध्यान्हें जिन पूजवा, जिनगृह गयो कुमारो रे ॥ १ ॥ एए ॥ करे विचार त्रिलोचना, चार घणी यज्ञ प्राजो रे || प्रीतम दजीय न प्रवियो, किशें विलंब्या काजो रे ॥ २ ॥ एण० ॥ दासी मूकी देहरे, प्रीतम करति सहाय रे ।। संघले दो जोयुं फरी, पण बाधो
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