________________
( ३ ) कन्या देश तेहने, हुं हवे रहुं निश्चिंत ॥१॥ जोषी तुरत तेडावियो, नांखे एणि परें राय॥ परणे कुमरी त्रिलो चना, वासर लगन बताय ॥२॥ जोई पुस्तक टीपगुं, लगन कियो निरधार ।। एह दिवस निर्दोष ने, जोतां दिवस हजार ॥ ३ ॥ घणे महोत्सवशुं नृपति, वर क न्या परणावि ॥ दीधो राज्यनंडार सद, करमोचन प्रस्ताव।धा कुमरी काज करावियो,सप्तनूमियोआवा सराय दियो रहेवानणा,तिहां नोगवे विलास॥५॥
॥ ढाल शोलमी॥पंथीडानी देशी॥ ॥दासीने कहे हवे मदालसा रे, प्रीतमन का न थर सार रे । सायर माहे बूड्यो ते सही रे, हवे हुँ जीवू शे आधार रे ॥१॥ दा० ॥ दान दीयो में दीन दुःखी नणी रे, साते क्षेत्र वावरयुं वित्त रे ॥ श्रावक धर्म यथाशक्त करे रे, जिनवरपूजा चोखे चित्त रे ।। ॥॥ दा०॥ हवे मुज बहेनी कुमरी त्रिलोचना रे, तेहने दे पंच रतन रे ॥ दीक्षा लेश हुं जिनवरतणी रे, पालिश संयम करिय जतन रे ॥३॥ दा०॥ दासी कहे सांग्नल तुं स्वामिनी रे, मकर मकर मनमाहे विषाद रे । कोइ परदेशी वस्वो त्रिलोचना रे, जेहनो सहु बोले यशवाद रे॥४॥ दा० ॥ रूपकला गुण
.
.
.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org