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________________ (२०) ग्यो विरह अपार ॥७॥५०॥ क्षण रोवे क्षण जो वे दश दिशे रे, कण कण पाये चेत ॥ मूरे यूथ ट ली मृगली परें रे, पिगु तोड्युं कांश हेत ॥ ॥ प०॥ प्राण होशे माहरां हवे पाहुणा रे, तुज विण सुगुणा नाह॥ एःख में खमणुं जाये नहीं रे. विरह लगायो दाह || ए॥प०॥में चिंतामणि रत न लद्यु हतुं रे, राख्युं करी जतन ॥ पण गजे नहीं पुण्य विदूगडा रे, रांकां घरे रतन ॥१०॥५०॥ कि श्युं करूं सनिल साहेलडी रे, हियडे दुःख न समा य॥ हीय? फाटे रत्नतलाकशुं रे, केम जी, मोरी माय ॥११॥५०॥ प्राणसनेही जलनिधिमां पड्यो रे, मने मलवानी आश। ऊंपापात करूं जो नीरमां रे, तो पोहोचु पियु पास ॥१२॥ १०॥ हवे जीव्या नो स्वाद नहीं किझ्यो रे, घर गेडीजे जी प्राण ॥ ढाल पूरी अग्यारमी रे, कहे जिनहर्ष सुजाण ॥ ॥१३॥५०॥ सर्वगाथा ॥२॥ . .. ... ॥दोहा॥ ॥ प्रीतमविण जी नही, डिश पापी प्राण ॥ निशदिन वींधे मुज नणी, पंचबाण सपराण ॥१॥ काया पावक संग्रहो, जीव ग्रहो जमराण ॥ रूप स्मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005373
Book TitleVastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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