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________________ (१२) ग प्रहार ॥ न०॥ १७॥ कु०॥ कुमर लगी बीहीव राववा रे लाल, रूप कीधुं विकराल ॥०॥ कहे जिन हर्ष सुगो हवे रे लाल, ए चोथी यश ढाल ॥ न० ॥ ॥ कु०॥१७॥ सर्वगाथा ॥ ए॥ ॥दोहा॥ ॥काढी ख कहे सुरी, कारे मरे निटोल ॥ हित कारण तुजने कहुं, मान मान मुंज बोल ॥१॥मुआ मां कांश नथी, जीवंतां कल्याण ॥ शुं जाये ने ताहरूं, करेज खांचाताण ॥२॥ कुमर कहे कर जोडिने, सां नल मोरी माय ।। मुजथी एहQ नवि होवे, क्यारे ए अन्याय ॥३॥ सुधापानथी जो मरे, चंपडे अंगार ॥ तो पण हुं परनारीने, न करूं अंगीकार ॥४॥ जो जाणे तो मार तुं, जो जाणे तो तार | आगल पागल सहनणी, मरकुंडे एकवार ॥५॥ ॥ ढाल पांचमी । बहेनी रही न सकी तिसेंजी॥ए देशी॥ ॥साहस देखी तेहy जी, देखी शील नदार ॥ नमगुण देखी करी जी, देवी कहे तेति वार ॥१॥ सखूगा ॥धन धन तुज अवतार ।। तुज सरीखो कोश नहीं जी, जोतां एणे संसार ।। स ॥ध०॥ ए आं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005373
Book TitleVastradanopari Uttam Charitra Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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