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( १० )
॥ ० ॥ तेह कर्म श्राव्या नंदे रे लाल, पाम्या एह संताप ॥ ० ॥ २ ॥ कु० ॥ एहवुं चिंतवी चित्त मां रे लाल, ध्वज बांधी एक वृक्ष || न || वन फल खातो तिहां रेहे रे लाल, साहसवंत सुदक ॥ ८० ॥ ॥ ३ ॥ कुण् ॥ छीप तली अधिवासिनी रे लाल, देवीयें दीठो ताम ॥ न० ॥ कुमर रूप रलियामणुं रे लाल, जाले अभिनव काम ॥ ८० ॥ ४ ॥ कु० ॥ कामराग व्यापत थइ रे लाल, निपट कुमरनी पास ॥ ८० ॥ श्रावीने एगि परें कहे रे लाल, वारु वचन विलास ॥ ० ॥ ए ॥ कु० ॥ सांजल हो नर साह सी रे लाल, हुं देवी एसे द्वीप ॥ न० ॥ रूपें मोई ताहरे रे लाल, यावी तुज समीप || न० ॥ ६ ॥ ॥ कु० ॥ ए तो पुण्यें पामियें रे लाल, सुरनारी संय म ॥ नु ॥ तुं प्रीतम हुं पदमिली रे लाल, मुजं जोगव जोग ॥ ० ॥ ७ || कु० ॥ तुजने मलवा मा हरूं रे जाल, दियडुं धरे बल्लास ॥ न० ॥ ब्यो लादो जोबन तयो रे लाल, पूरो मुज मन आश ॥ ० ॥ ॥ ८ ॥ कु० ॥ रूप निद्दाली ताहरु रे लाल, गुए देखी सुविलास ॥ ० ॥ मन चंचल तुज वांसे ययुं लाल, कण मेल्हे नहीं पास || इ || ए || कु० ॥
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