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________________ અભિનવ લઘુપ્રક્રિયા त्यय':- रङ् प्रत्ययवाणा यज् , जप् , दंश, देय ते प्रत्यय वागता चना क्सने जू नागू या५से बद पातुमाने ऊक प्रत्यय या शीलादिषु-वर्तमानामा) (शमी* -- 41689931 निबार 0 यजू : - पुन पुनः यजति थायजूक बार बार पूर ना त्या नांधा.) (1) यजू य=(२) द्विव-ययन् (3) आ गुणाव यादेः | 0 योगी - युनकेत इति - युज् + चिनण। 41 सन यायज्-(४) मा ३ऊक-यायन +4+ [(33) युज-मुज-त्य ज-रञ्ज-द्विख-दुष-द्रुह-दुहाड ऊक ५, अत:, योऽशित- १५ यायत् ऊम्यायजूकः भ्याहनः ५/२/५० युज पोरेने शीलादि भारतमा 0 जप् जञ्जपूकः मृश- पुनमुन जपति- घर मयानामा धिनण् प्रत्यय ५.५३. ५७६ पार पार ये जप्+पङ् -द्विर-अनादि ना५ = (प्रस्तुत स्त्री जन ग्य11 अने गुण बता ) जजपूयः (जनम०४/१/५३म् भागम जना यात्रा योग+इन् = ( से.. थी) रोगी 2-1-री-ते ञ् ) जजप् + य = जञ्जपूक भुज् + घिनः = मेगी 0 दश् दन्दशूक = बार वार नार 0 क्ते भ ? 0 वद्-बाबदूक. = महुमाना। अनु - अन्य - अध्यापा-शिवर्ण यजनाद * अनुति :- द्रमकमाडि: ५/२/४६ या यह ध्यण 4/1/१७ या ध्यण) - अच् धातु का ५२ 011 भविशेष :- 0 २५४ सेट् छे अर्चित: मते या धाम च ने. क् + 4॥ [2263] विशेष :-- 0 अनिटः ४५ ४ १ . (११८) जागुः ५/२/४८ संकोच =सम्+कुचू+घ - 46 क्त बामता इट् से भाटे चू नाक्न * वृति:- तस्मादुकः स्यात् । जागरुकः थय. 10 युज , भुज् ,भन् त्यत् कमेरे य२री-यनान्त - शमष्टकााजादिभ्पश्च धिनण् वक्तव्यः 卐वृत्यर्थ:- जाग धातुने ऊ प्रत्यय याय मानट् यतुमा यी नियमों पित'भानामा) [१२०५] 0 जागरुका = MERI-सापयेत जागर्ति इति एवं शील: | (१२०) वृइ-भिक्षिलुण्टि जल्पिकुट्टाटकः ५/२/७० == जागृ++=(जागुः किति ४/3/४ थी गु१) जागर+ऊक *सूरथ०. वृह-भिक्षि टुपिट-जलि-कुदाटात टाकः मनुवाति:- य जजनि० ५/0/४७ या ऊक: * त:- स्पष्टम् । बाकः । शिक्षाक: विशेष :- 0 २५ष्ट त्य :- वृद्ध (क्यादि ११:४) भिक्ष, पति :- (१) शम् अष्टकात घिनण लुण्ट् , जल्पू , कुट पातुमान टाक (भाक) प्रत्यय याय. ५/२/४८ मा मेस शव-दम्-म्-श्र-भ्रम् - (शीलादि समा-भानमा) क्षम्-मद्-वलम् मा पातु माने (पत'भानमi) घिनण | 0 वराकः = सियारे-वृणीते इति एवं शील -q+ट'क (इन ) प्रलय यापछे | =(शुक्ष) पर+आक 0 शम+धनण-श+इन-(अमे..) शमी-( 4 0 भिक्षाकः - समाश भिक्ष+टक ... यझिरमिननि० ४//५५ थी कि नव छ. 0 लुण्टाकः = दुसरे 0 जल्पाकः = बोरनारे। 0 +चिन-इनू) = दमी (५७५) + ५:-07-- इत्थी स्त्रीलिंगे [१२०४ ही था५ (पको /२०१जीक+की-वर की (Hic) कोऽनिटश्चनको मिति ५/२/८ | - सी (अस्थयां लुक् यी राक् +ई) * सूत्रथ0 :- क्त भनिटा च-जे: क-गोचिंति [१२०५] * वृति:- क्तेऽनिटो धातोश्चापिति प्रत्यये परे कगो म्याताम । शमी, योगी, भागी । तें इगि किम् । पर्स: • शमी शेतीने-मी - पाथरे वृत्यर्थ:- क्त प्रत्य५ मारता ने अनिट् घिन्नी मनु प्रति धन ना भारी - ५९शम -(इट नसता तुमय तेका पातुमाने घ-इत बोरेभा प्रालिनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.005138
Book TitleAbhinav Hem Laghu Prakriya Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year1988
Total Pages254
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Grammar
File Size17 MB
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