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नित उठी वंदूं शत्रुंजे गिरीश, सम्मेत शिखरे वंदूं जिनविश ! पार्श्व की तपोभूमि उवसग्गहरं, वंदूचरणे पार्श्व जिनेश्वरं !
न स का कार्य समयावधि में
की कृपा करें.
गण इसका
सकें.
सिद्धाचल समरुं सदा, सोरठ देश मोझार ! मनुष्य जनम पामी करुं, वंदूं वार हजार !!
नेनशी वोरा, मुंबई
હ્નસાગરસુતિ
पार्श्वद्या : तीर्थपाविंशा, यत्रसिद्धि पदंगताः, सम्मेतशिखरं वन्दे निर्मलानन्द दायिनम् ! श्री वीरो यत्र निर्वाणं, प्राप्त: पाप प्रणाशन:, पावापुरी महातीर्थ तंवन्दे भक्ति भावतः !
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શ્રી નવરત
परसुरिक म.सा
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