________________
योनि मुद्रा (१)
ग्रथितानामगुलीना तर्जनीभ्यामनामिके संगृह्य मध्यपर्व - स्थांगुष्ठयोर्मध्यमयोः सन्धानकर योनिमुद्रा ।
अर्थ : दोनों हाथ की परस्पर में बन्धी हुई अंगुलियों की तर्जनियों के द्वारा दो अनामिका अंगुलियों को पकड़कर फिर दोनों मध्यमा अंगुलियों के मध्य पर्व में दोनों अंगुष्ठो को स्थापित करना, अंगुष्ठों को मिलाना योनि मुद्रा है ।
उपयोग : सदाचारों की वृद्धि ।
• 36.
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org