________________
आह्वानी मुद्रा
हस्ताभ्यामञ्जलिंकृत्वा प्राकामामूलपांगुष्ठसंयोजने
नाह्ववानी। अर्थ : दोनों हाथों से अञ्जली करके भलीभौतिमूलपर्व [हथेली के
पौंचों का बीच भाग] पर अंगुष्ठा का संयोजन [स्पर्शन या
स्थापन] करना आह्वानीमुद्रा है। उपयोग : अनुष्ठान - साधना के वक्त आराध्य देवी तत्त्व को
आमंत्रण।
. 3. Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org