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________________ देवदत्ता ६३५ ६३८ २०३ द्राविड २२५६ • परिशिष्ट-८ . दशार्णभद्र ३५२ नाटपुत्त २६४ दाम ४३०, १८०४ नाभेय ६० दिङ्नाग २३१, २३२, १६०५, ७४७ नारद ६३८, १०९९, ११०६, दुर्गतनारी ३६८ ११५५, १३०५ दुर्मुख २०३६ नारायण ५७८, १६०० दुर्योधन २९६ निग्रोध ५१६ दृढप्रहारि २०३, १३०३, १८३६ नृपकन्या २०३ दृढा १८०४ नेमिनाथ ११९८ देवदत्त पद्म १९१९ पद्मनाभ ३२२, ६३८, १०४७ देवपाल पद्मभद्र १९१९ देवहूति ८२०, १३१० पद्मसम्भव ३५५ देवानन्दा २६२, २७१ परशुराम ९९९ द्रमिण २१०५ पराशर १०७९ १९०२ पाण्डव १९०२ द्रोणाचार्य ६२, ५२७, ५३१, ५३५, १०८०, १९८९ | पातञ्जल १६७२ द्रौपदी ६३८, ६७५ पादलिप्तसूरि ४०१, १८३१ धन ६०, ९२६, ९२७, १८३६ पाराशर्य ८४३ धनञ्जय ९६७ १२९७ धनपति ९४८ पार्श्वनाथ १५४८ धनपाल ९२६, ९४८ पालक ११९८ धनसार्थवाह पितामह धरणेन्द्र २०३, १९७९ पिहिताश्रव (पार्श्वसन्तानीयमुनि) ११७ धर्मघोष ९४८ पुक्कुसाति २६४ धर्मजिन ९९५ पुरुषोत्तम १२०३ धर्मसागर १५११ धर्मानन्द ४६३ पूरण १३८७ धर्मिल १९९८ पूर्णराजा १९८७ नन्दमणिकार ८५, ७१४, १५४९ पृथिवीचन्द्र १२२, १६८८ नन्दिषेण १२०२, १२०५ पेढालपुत्र नन्दीश्वर १०८८, १०८९ पोट्ठपाद २६५, १३५४ नमिराजर्षि १८५९ पौष्करस्वाति २६६ नमुचि २१७० प्रकाशानुयायी २०७९ नयविजय २१८०, २१८३ प्रदेशिभूप १८, १९, १८८० नहुष १०८८ प्रभाकरमिश्र २१४९ नागदत्त ९४८ ५६२ नागार्जुन १८३१ प्रसन्नचन्द्र २०३६ नागेन्द्र १०८२ प्रसेनजित २६५, ५१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org पार्थ पुष्पाचार्य प्रभाकृद्
SR No.004945
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 8
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages414
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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