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________________ समान • त्रिशि.51५७२९तथा 'नयता' व्याध्यामा वविता पर्थोनी याही . 143 (४) आचारसमाधि १९९८ समाधि प्रज्ञा जुओ ज्ञान (अवशिष्ट) समाधि (हारिभद्रीय) समाधिप्रारम्भपरिणाम जुओ परिणाम (अवस्थादि) (१) अमोघसमाधि १३२० समाधियोग (सम्प्रज्ञातादि) जुओ योग (अवशिष्ट) (२) अमोघपाशसमाधि १३२० समाधि योगाङ्ग जुओ योगाङ्ग (३) अजितसमाधि १३२० समाधिराज जुओ समाधि (बौद्ध) (४) अपराजितसमाधि १३२० समाधिसंस्कार जुओ संस्कार (५) वरद समाधि १३२० समाधिसिद्धि १०८९, १४८५, १८१२ (६) वरप्रद समाधि १३२० + जुओ सिद्धि (पातञ्जलमान्य) (७) अकालमृत्युशमन समाधि १३२० जुओ वायु समाधि दशविध १३२२ समापत्ति १०५, १२०-१२१, १४५-१४६, समाधि योग (सम्प्रज्ञातादि) ३२४-३२५, ३२९-३३०, ३३६, ३३९, ३५५, (१) सम्प्रज्ञातसमाधि ७४१, ७८३, ८८४, १२३६, | १३३०, १३३५-१३३८, १३४०, १३४३, १२३७, १३२६, १३२८, १३३०, १३३३, १३५०,१३५३-१३५६,१३६०,१३६३-१३६५, १३४५-१३४९, १३५१-१३५४, १३७१, | १४९५-१४९७, १५२२, १६८३, १८११ १३९४, १४८५, १६७५-१६७६, १६८४, | (१) गृहीतृसमापत्ति १३३५-३६, १३५५ १६८५, १६८७, १६८८, १९९५ (२) ग्रहणसमापत्ति १३३१, १३३५-३६, १३५५ (i) सवितर्क समाधि १३२६-२८, १३५२ । (३) ग्राह्यसमापत्ति १३२९, १३३५-३६, १३४२ (ii) सविचार समाधि १३२७, १३२९, १३५२ | (४) सवितर्कसमापत्ति १३२७ (iii) निर्वितर्क सम्प्रज्ञातसमाधि १३२७, १३२८, १३३९- (i) शब्दसमापत्ति १३३८-३९ १३४०, १३५२ (ii) अर्थसमापत्ति १३३८-३९ (iv) निर्विचार समाधि १३३०, १३३५, १३४४, (iii) प्रत्ययसमापत्ति १३३९ १३५२,१३७० (iv) विकल्पसमापत्ति १३३९ (v) सास्मित समाधि १३२७,१३३२-१३३५, १३५२ । (५) सवितर्का समापत्ति १३२८, १३३८-१३४० (vi) सानन्द समाधि १३२७, १३३०-१३३५, १३५२ ] (६) निर्वितर्कसमापत्ति १३२८, १३३९ (२) असम्प्रज्ञातसमाधि ७८३,१३४७-१३४८,१३६८ | (७) सविचारसमापत्ति १३२९-१३३०, १३४०-४३ (३) सबीज समाधि १३४२, १८१२ (८) निर्विचारसमापत्ति १३४०, १३४३,१३५२ (४) निर्बीज समाधि १३४६-१३५० (९) परमात्मसमापत्ति १३५५-१३५७, १३६१ (५) धर्ममेघ समाधि ७५८, १३१५, १३३४, १३४४, | समापत्ति (बौद्ध) १३५६ १३६९-१३७१, १३७६ (१) दर्शनसमापत्तिचतुष्टय १३५४ (६) सविकल्प समाधि १३५१ (२) आकाशाऽऽनन्त्यसमापत्ति १४९७ (७) निर्विकल्प समाधि १३५१ | समुचितयोग्यता जुओ योग्यता (८) धर्मसमाधि १३७० | समुच्चय २८ समाधिजप्रीतिसुखसंज्ञा जुओ संज्ञा (बौद्ध) सम्पूर्णकृच्छ्र तप जुओ पूर्वसेवा-तप (पूर्वसेवा) समाधिपरिणाम जुओ परिणाम (अवस्थादि) | सम्प्रज्ञातयोग जुओ योग (इच्छादि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004938
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages478
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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