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________________ 106 • त्रिशि५४२५॥ तथा 'नयत' व्याध्यामा विदा पर्थोनी याही . (४) लीलोन्मुक्ति १४०१, १४०२ तत्त्वधर्मयोनि १३९३ (५) सत्पदा १४०१, १४०२ तत्त्वशुश्रूषा १००८, १४००, १४९३-१४९५, (६) आनन्दप्रदा १४०१, १४०२ १४९९-१५०१, १५०४, १५२७ (७) परात्परा १४०१, १४०२, १६८८ तत्त्वश्रवण १४९४, १४९६, १५००-१५०१, ज्ञानयज्ञ जुओ यज्ञ १५०४-१५०५, १५१७, १५४०, १५४९ ज्ञानयोग ७२२, ११०६, १२७९, १२८१, १२८८- तत्त्वश्रवणफल १५१९-१५२१ १२९२, १३६०, १३९५, १४०१, १५०३, | तत्त्वसंवेदनज्ञान जुओ ज्ञान (विषयप्रतिभासादि) १५९९, १६१०-१६११, १६२२, १६३२, | तत्त्वसंवृत्ति जुओ संवृत्ति १६६०, १६६९, १६८८-१६८९, १७६९, तत्त्वसंस्कार जुओ संस्कार १८३३, १८३५-१८३७, १९१८, १९३०, तत्त्वाभिनिवेश ६८५, ६८६, ९९९, १३०९२०९६ + जुओ योग (अवशिष्ट) १३१०, १४११, १५५७ ज्ञानविनय जुओ विनय तथाता १५९४, १५९५ ज्ञानवृत्ति ७७५, १०५६ | तथाभव्यत्व १२२, २२०, ७०८, ८८३, ९१३, ९४८, ज्ञानशक्तिद्वय ८११ १०१६, १०२५-१०२८, १०३१, १२०४, ज्ञानस्वरूपसमाधि जुओ समाधि (निरालम्बनादि) १३०८, १३७६, १४३९-१४४१, १४६१, ज्ञानसंन्यास (ज्ञानसंन्यासी) १२८९ १४६९, १६०५-१६०६, १६१९, २१०३ ज्ञानसम्पत् ६५४ | तथाभव्यत्वपरिपाक ८८३, १४४०-१४४१, १४६९ ज्ञानात्मा जुओ आत्मा (द्रव्यादि) तद्धत्वनुष्ठान जुओ अनुष्ठान (विषादि) ज्ञानाद्वैतदेशना जुओ देशना तनुक्लेश जुओ क्लेश (पातञ्जल) ज्ञानाद्वैतदेशनाप्रयोजन १५९९ तनुमानसी योगसाधना जुओ कर्मयोग (वैदिक) ज्ञानाद्वैतवाद जुओ वाद ५०९-५२१, १८७७-१८७९ ज्ञानाद्वैतवादी जुओ वादी तप (पूर्वसेवा) जुओ -पूर्वसेवा ज्ञानिलक्षण १९७१ तप (शारीरादि) ज्योति जुओ परंज्योति (१) शारीरतप ५१८, ८३५, १४७८ ज्योतिष्मती प्रवृत्ति जुओ प्रवृत्ति (२) वाङ्मयतप ५१८, १४७७-१४७८, १९६६ ज्योतिष्टोमयज्ञ जुओ यज्ञ (३) मानसतप ५१८, १४७८ (४) बालतप ४३०,४९३,५२३,१३८७-१३८९ (१) नैयायिकमान्य तत्त्व ७९२ (५) सात्त्विकतप १४७८ (२) वैशेषिकमान्य तत्त्व ७९२ (६) राजसतप १४७८ (३) साङ्ख्यमान्य तत्त्व ७९२ (७) तामसतप १४७८ (४) पातञ्जलमान्य तत्त्व ७९२, १३२७ । (८) अच्छिद्रतप १४७८ (५) वराहोपनिषदुक्त तत्त्व ७९२ (९) द्वादशविधतप ५१८, १८८४ तत्त्वजिज्ञासा (१०) अविरततप ४०२ तत्त्वदृष्टि १६५३ ५१६, ५१७ तप तत्त्व | तपःफलम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004938
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages478
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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