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________________ गुणनाशक .द्वात्रिंशि५४२९॥ तथा 'नयतता' व्यायाम विदा पर्थोनी याही . 101 १३०७, १३९९-१४०२, १४१८-१४१९ । (८) अपूर्वकरणगुणस्थान (अष्टमगुणस्थान) १२८७, (२) जिज्ञासा (५७१-५७२, ७०९-७१३, १६६२, १६९६,१८३२,१८३४,१९२२ ७२०, ९५७, ९६१, ९७४, ९९८, १०२४, (९) अनिवृत्तिबादरसम्परायगुणस्थान (नवमगुणस्थान) १२४६, १३०९) १४००, १४७५, १५८९. १३६२, १३७६, १८३३, १९२२ १५९०, १७०९, १७२८-१७२९ (१०) सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान (दशमगुणस्थान) ८७७, (३) शुश्रूषा ९७०,१४००, १४९४, १४९९-१५०२ १३०१, १३६२, १९२२ (४) श्रवण १४००, १५०४-१५०५, १५११, (११) उपशान्तमोहगुणस्थान (एकादशगुणस्थान) १३६२ १५१५, १५१७, १५१९-१५२१ (५) बोध १३९९-१४००, १६१७-१६१९, (१२) क्षीणमोहगुणस्थान (द्वादशगुणस्थान) १३०२,१३६२ १६२३-१६२४ (१३) सयोगिकेवलिगुणस्थान (त्रयोदशगुणस्थान)१२५६, (६) मीमांसा १४००-१४०२,१६४१,१६५९-१६६० | २०१८ (७) प्रतिपत्ति १४००, १६६२-१६६३ (१४) अयोगिकेवलिगुणस्थान (चतुर्दशगुणस्थान) ८७९ , (८) प्रवृत्ति १४००, १६८०-१६८३ १२५६, १३१९, १३६२, १६८९१५५६ १६९०,१९३९, २०१८ गुणपराभूमिका जुओ उपासनाभूमिका गुणानुरागी १४, १५ , १९१, १९२, ३०४, गुणपर्व १३४१ ९२५, ९२८, ९२९, १०२३, १०२४, ११४६ गुणराग जुओ चारित्रलिंग १२७४, १६७०, १९४८-१९४९ गुणानुरागी १४-१५, १९१-१९२, ३०४, (१) मनोगुप्ति १२५८-१२६१, १८६१ ९२५, ९२८-९२९, १०२३-१०२४, ११४६ | (२) वचनगुप्ति १२६१, १८६० गुणस्थानक (३) कायगुप्ति १८६० (१) मिथ्यादृष्टिगुणस्थान(प्रथमगुणस्थानक) २८, ८४६, | गुरु ८५१-८५२, १००६ ९४९, १३६१, १३८९-१३९०, १७१७, गुरुकुलवास ९१, १०८, १६१-१६३, १६५१४६४, १४६६, १५२३ १६६, १६८-१७०, ३७६, ४००-४०१, ५२२(२) सास्वादनगुणस्थान (द्वितीयगुणस्थान) १३१९, १३६१| ५२३, १९२७, २००५-२००६ (३) सम्यग्मिथ्यादृष्टिगुणस्थान (तृतीयगुणस्थान) २८, गुरुदेवादिपूजन १६९, ८८१, ८८९, ९००-९०१, ८७७, १३६१ ___९१२, १००६, १०१४, १३२०, २०९५ (४) अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान (चतुर्थगुणस्थान) + जुओ पूर्वसेवा १२१०, १५२३, १६६२, १९२२ १९३७ | गुरुदेवादिपूजा जुओ सम्यग्दृष्टिलिङ्ग (५) देशविरतिगुणस्थान (पञ्चमगुणस्थान) ८७७ , गुरुद्रव्यभोग ८४० १२६२, १३१९,१६६२,१६५७ गुरुपारतन्त्र्य ११८, १६३-१६४, ४३३-४३४, (६) प्रमत्तसंयतगुणस्थान (षष्ठगुणस्थान) ३९३, १२७७, | ४३८, ५२४, ७००, १४२६, १५३८-१५३९, १३०८,१६६२,१९१३,१९४० १५४१, १९०४ (७) अप्रमत्तसंयतगुणस्थान (सप्तमगुणस्थान) १६६२, गुरुप्रत्यय जुओ प्रत्यय २०११,२०१२,२०४१,२०६२ १६८, ५५७, ८३८, १२४६, | गुप्ति | गुरुभक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004938
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages478
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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