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________________ • त्रिशि145२५॥ तथा 'नयसता' व्यायामां पवित पार्थोना याही . 97 कर्म (अदृष्ट, भाग्य) ७२९, ८१८, १०९२, ११२९, (३) सानुबन्धनिर्जरा १३८७-८९, १४०४ ११३०, ११५१-११५२, ११५५, ११५९, (४) निरनुबन्धनिर्जरा १३८८, १४०५ ११६१, ११६८-११७६, ११७९-११८२, | कर्मपर्यायशब्द जुओ पर्याय पर्यायशब्द ११८६-११९४, ११९७-१२००, १२०२- | कर्मफल ५९०, ६५६, ७४३, ७९३, ७९५, ९०९, १२०६, १२१२, १२१४-१२१६,१५९९- १०२२, १०८८, १०९०, ११०८, ११९०, १६००, १६०२-१६०६ + जुओ दैव । | १४०९, १७१०, १७७३-१७७५, १९१० (१) सोपक्रम कर्म २५९, २७१, २७३, ६२५-६२७, कर्मबन्धयोग्यता ८७६-८७९ ६२९, ७२९, १११७-१११८, ११८४, | कर्मबन्धयोग्यतापरिपाक ८८१ १२०१-२, १२१०, १३१५, १७७४-१७७५, कर्मबन्धहेतु 299 १७७८, १७९०-१७९२ कर्मयज्ञ जुओ यज्ञ (२) निरुपक्रम कर्म २५९, २६०, ७२९, १११८, कर्मयोग (वैदिक) १६६०, १६८८ ११७८, ११८४, १२०२, १२९९-१३०१, (१) शुभेच्छा १४०१, १४०२, १४४९, १५१९, १३१५, १७७४, १७७५, १७७८, १७९०- १६२२, १६२७, १६२९, १६६०, १६६९, १७९२ १६८८ (३) निकाचित कर्म ३९, १८०, ९७५, १०२२, (२) विचारणा १४०१, १५०३, १५१९, १६२२, ११८४, १२०७, १२१०, १२१३, १३००, १६५९-१६६०, १९१८ १३१९, १३९२, १४०८, १४४६, १६४८, (३) तनुमानसी १४०१, १५१९, १६२२, १६६० १६५०, १७७०-१७७१, १७७४-१७७५, (४) सत्त्वापत्ति १४०१, १६२२, १६२९ १८३३-१८३६, १८४७ (५) असंसक्ति १४०१-१४०२, १६६० (४) अनिकाचितकर्म १८० (६) पदार्थाभावना १४०१, १६६९ (५) शुक्ल कर्म १०९२ (७) तुर्यगा १४०१, १६८८-१६८९ (६) कृष्ण कर्म १०९२ कर्मवासना जुओ वासना (७) अशुक्लकृष्ण कर्म १०९२ कर्मवासनाद्वय १०९३-९५ (८) शुक्लकृष्ण कर्म १०९२ कर्मविपाक १०८७,१०९०-९१,१७४०,१७७४ (९) प्रारब्ध कर्म १३५०, १७७० कर्मसंन्यास ४८३, १२८९ (१०) सञ्चित कर्म १७७० कर्मसिद्धि १०३४-१०३५,११७७-११८३ (११) आगामि कर्म १७७० कर्मसूदनतप जुओ पूर्वसेवा-तप (१२) विवेकज्ञानावरण कर्म १५०९ कलिकालयोगी जुओ योगी (१३) यतनावरण कर्म १५५,१५८,१८०, | कल्प १८८, २६७ ३९२,१२६९-७०,१३८६,१३९३,२१३६ | कवलभोजनकारण १०४९ (१४) प्रकाशावरण कर्म १८१२ | कवलभोजित्व २००९,२०१०, २०१८, २०२१, २०३१, कर्मनिर्जरा २०३९, २०५६-२०५७, २०५९, २०६९ (१) सकामनिर्जरा १३८५, १३८७-८९ कषपरीक्षा जुओ परीक्षा (२) अकामनिर्जरा १३८७-८८ कषाय ८४५, १४२९, ८६८, ८७६Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004938
Book TitleDwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 1
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorYashovijay of Jayaghoshsuri
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages478
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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