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संखित्त - तरंगवई - कहा (तरंगलोला)
वंदित्तु सव्व-सिद्धे धुवमयलमणोवमं सुहं पत्ते । जर मरण- मगर पउरं दुक्ख समुद्द समुत्तिणे ॥ १ संघ-समुद्द गुण-विणय-सलिल- विण्णाण नाण-पडहत्थे । वंदामि विजय- विरइय-कयंज लिउडो नओ सिरसा ॥ २ भद्दं सरस्सईए सत्त स्सर - कव्व वयण - वसहीए । जीए गुणेण कइवरा मया वि नामेहिं जीवंति ॥ ३ कव्व- सुवण्णय-निहस - सिलाए निउण-कइ - सिद्धि-भूमीए । परिसाए होउ भद्दे गुण-दोस वियाणय- सहाए ॥ ४
पालित्तएण रइया वित्थरओ तह य देसि वयणेहिं । नामेण तरंगवई कहा विचित्ता य विउला य ॥ ५ कत्थइ कुलयाइ मणोरमाइ अण्णत्थ गुविल - जुयलाइ । अण्णत्थ छक्कलाई दुप्परिअल्लाइ इयरार्ण ॥ ६ न य सा कोइ सुणेई न पुणो पुच्छेइ नेव य कहेई विउसाण नवर जोग्गा इयर जणो तीए किं कुणउ ॥ ७ तो उच्चेऊणं गाहाओ पालित्तएण रइआओ । देसी - पयाइ मोत्तुं संखित्तयरी कया एसा ॥ ८ इराण हिट्ठाए मा होही सव्वहा वि वोच्छेओ । एवं विचितिऊणं खामेऊण य तयं सूरिं ॥ ९
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अस्थि विसाल-निवेसा भूमियलोइण्ण- देवलोग- समा । कुसल - जण - संकुला कोसल त्ति लोए पुरी खाया ।। १० बंभ - समणाति हि देव पूय- परितोशिया जहिं देवा । पार्डेति पुक्खलाओ वसुहाराओ कुडुंबे ॥ ११ तत्तोच्चयस्स समणस्स अवहिया अविमणा अणन्नमणा । पालित्तस्स य गुण-लिप्त्तयस्स मइ - साहसं सुणह ॥ १२ पाय च निबई (?) धम्म- कहं सुणह जइ न दुब्बुद्धी ।
जो धम्मं सुणइ सिवं सेो जम-विसय न पेच्छिहिइ ॥ १३
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मगहा
अस्थि समिद्ध-जण गणो बहु गाम - सहस्स-गोट्ठ संन्निचओ । नाम जणवओ कहासु परिपायडिय - नामो ॥। १४ निच्चुरसवाण वासो ववगय परचक्क चोर - दुब्भिक्खो । जो सव्व सम्म संपय-समणिओ विस्सुओ लोए ।। १५
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