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१३०.
तरंगाला
अह तिमिर-निवह-सामा संपत्ता जीव लोग-निस्सा । कोसिय-पिय नेवत्ती(?) गयण-तल-पसाहिया रत्ती ॥१०५१ सायर-कय-विद्धी-वियासो(?) जणस्स उद्वेइ । नह-संचारिम-तिलओ कुंद-कुसुम-पंडुरो चंदो ॥१०५२' उक्कुट्टि-हसिय-छालिय(?)-पडु-पडह-निनाय-गीय-सद्दाला। पल्ली मत्त-पणच्चिर-चोरेक्क-रस-जणा जाया ।।१०५३ तो जेमण-वक्खित्ते जणम्मि सो तकरो पियं मुयइ । भणइ य मा भोहि तुमं एह अहं ते पलाएमि ॥१०५४ तो तेण नीणिया मो सउतायं(?)केणई अनज्जंता । विजय-हारेणम्हे
पल्लिवती-गेह-रूरेण(?) ॥१०५५ रु दत्तणेण सुचिराहिं निग्गया समहियं तुरंता य । किच्छाहिं निग्गया मो कास-सर-कुडीर-मज्झेण ॥१०.६ तो तेण पुव्व-वाहिय-परिचिय-दार-विवर-मुणिय-परिमाणो । गहिओ निचट्ट-सुहिओ अडवी-सीमंतओ पंथो ॥१०५७ तो तत्थ निरिक्खंतो पुरओ पासेहि मग्गओ य पुणो । । बहुसो य निसामंतो अद्वाणय-चिट्ठिओ सई ।।१०५८ गहियावरण-पहरणो उप्पीलिय-धणिय बद्ध सण्णाहो । वच्चइ पयद्धसाणो(?) पंथं मोत्तण . पासेणं ।।१०५९ भणइ जइ वहइ कोई पभाहि(:) तो तं इमेण पंथेण । जो ताव मरण कामो चोरो होइहि वारेमि(?) ।।१०६०
गतूण चिरं तह उप्पहेण पंथं पुणेा समोइण्णा । वारेण वरेण समया संजाय-भएण तह निहुया ॥१०६१ पब्भज्जमाण-बण-सुक्क पत्त सदाणुकारिणो केइ । पक्खे पप्फोडता पक्खी रूक्खाहि उड्डीणा ॥१०६२ वण-महिस-वग्घ-दीविय-तरच्छ-पुल्लीण तह बिरालाणं । सुणिमे। सउण-गणाणं च तत्थ नाणाविहे सद्दे ।।१०६३ भवियव्वया अम्हं महाभए तत्थ वट्टमाणाणं । अणुलोमा आसि तया खेमा मिग-पक्खिणा सव्वे ॥१०६४ वणहत्थि-हत्थ पल्हत्थियत्थ(१)-लुय-फल-किसलय-पवाले । गोडिय-विडवे विडिमे कत्थइ पासामि हं पडिए ।।१०६५
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