________________
११६
Jain Education International
तो फुल्ल-सूरवल्लीए तेहिं संदोणिया विसम-विस-महल्लि चोर - सुहल्लि
लट्ठ
गिरि-कोलंब-निविट्ठ अंतो- बहु- पाणीयं विसमं असि-सत्ति-कंड-फळ- कणक-कांत विविहा उद्देहिं चोरेहिं विविह-जण-निच्च-निग्गम-पवेस- संरक्खिय - दारं
दुयग्गा वि । पलि ॥९४२
एत्थ भइ चोरी दट्ठूण पिययमं
निया पाणिय-दरिद्द - पेरंतं ।
अगमं पर-बलाणं ।।९४३
1
मल्लह डि- पडह - डंडुक्कि -मउंदा संख पिरिलि-श्व-मुहल उग्गीय - हसिय-छलिय ( ? ) विग्घुट्टोकट्टी- सद्दलं । ९४५ पेच्छामो य पविट्ठा ठाणं सज्जं पसाय पज्जाए । पाणि- निसुंभण- तुट्टाए बहु-धय- चिंधाए अज्जाए ||९४६ कच्चाइणीए ठाणं नमिऊण पयाहिणं च काऊणं । दच्छिम्ह तत्थ चोरा अण्णे पच्चागते चौरे ||९४७ तो तहिं पच्चाभट्ठा दिट्ठा कय कम्मया नियत्तता । सव्वे अणह- सरीरा लाभ समग्गा इय सहुति ( 2 ) ॥९४८ पल्लि च अल्लियंते लयाग संदाणिए दुयग्गे वि दच्छीय णे अणिमिसा विम्हिय-हियएहिं ते चोरा ॥९४९ भाणियह तहिं केइ अरहइ अप्परिततेण मणे कयं सोहंति एक्कमेक्का एसो [तरुणो] चंदेण जहा रत्ती रत्तीए
इ
जुवाण-वंदि
विलया - रोहिणि-सहियं
1
।। ९४४
*
।।९५२
पयत्ता जणेण
पल्लि मुदिय-जण-मणं कत्थइ संरुद्ध-बद्ध-कलुण-जणं । तं देवलोग जमलोग - उभय · सरिसोवममतीगं अरूय (?) - रूय- लायण्ण-जाव्वणं देव-मिहुणग सरिच्छ्रं । तरुण मिहुणं किर भडेहिं गहियमाणिज्जइ इहं ति ॥ ९५३ साऊण पल्लि रच्छा सबाल बुद्ध - महिला - समग्गेण । आपूरि कोहल-मण || ९५४ एवं अइणिज्जंते अम्हे कलुणे तहिं महिलियाओ । सायंताओ पुत्ते च काउं राति बंदीओ ।। ९५५ तरुण-जण नयण मण चोरी | हास-रस-पसाहिय सरीरा ॥ ९५६ चंदमिवायारियं नहयलाओ । ठह तागं (?)
तरुणी
मे
।।९५७
नर-नारि रुव-सारेण । कयंतेणिमं मिहुणं ॥९५० इमा य तरुणीय । सरय- चंदो ||९५१
जहा
For Private & Personal Use Only
तरंगलाला
www.jainelibrary.org