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________________ ९८ ७९१ ७९२ ७९३ सो तुज्झं साहीणो दिण्णं से जीवियं तुमे चेव । परिहर अयसुप्पत्ति लभिहिसि तं गुरु- पसाएणं । महिलाण चित्त-साहस- विवेय-रहियत्तणेण अहयं पि । कामेणं तोरविया पुणो वि तं चेडियं बेमि ॥ उच्छाह - निच्छिय-मती अगणिय-पडिवाय-दोस- निस्संको । साहसिओ किर पावति सिरिमउलमकालियं लोए ॥ सव्वस्स य णिय - गहिय- दव्व पडिसिद्ध-चेट्ठस्स । कज्जं सुठु वि गरुयं लहुये पणमइ पारडं ॥ ७९४ जइ पिययमस्स पासं न नेसि मं दंसणुस्सुई तस्स । तो काम - सराभिहया अज्ज विवज्जामि ते पुरओ ॥ मा कासि काल - हरणं नियाहि मं पिययमस्स पामूलं । कुण अकज्जं पि इमं जइ नेच्छसि मं विवज्जति ॥ एव क [हि ] ए तिए मज्झं पाण-परिरक्खणट्ठाए । पिय-भवण - गमणमब्भुवगय ( १ ) अच्छ किच्छाहिं सा चेडी(?) ॥ ७९७ Jain Education International * ७९५ तो हं पमुइय-मणसा पसाहणं साहणं रुइ-गुणाणं । गिण्हामि वम्मह-धं सुंदेर पसाहणं तुरियं । ७९८ अच्छीणि य मेत्ता तदेति (?) चिरमप्पणो सिरिं दद्युं । रमणसमारा मे (?) कारण गमणा - समुछहिययाए ( ? ) ॥ तो हं पियस्स वसहिं सहसा दूईए कहिय - पायडियं । हियएणं पुव्व-गया पच्छा य पाएहिं गच्छीय ॥ संगहिय-रयण-मेहल- जंघ - समारुहिय नेउर-धरीओ । सद्द - रणक्किय-चलणा पुरिमधु (?) क्कंपियंगीओ ॥ ८०१ हत्थ - गहि एक्कमेक्का पक्ख-दारेण निग्गया दो वि । माण- गुण (?) संवाहं ओइण्णा मो नरिंद-पहं ॥ ८०२ बहु-विवणि-निण(?,-पेच्छणय-नट्टसालाउलं परिवयामो । कोसंब - रायमग्गं सग्गस्स सिरिं अणुहरतं ॥ निउणे सुंदरेसु य न मे मणो तत्थ पेच्छियव्वेसु । पिय-पुरिस- दंसण-समुस्सुईए तुरिय पयट्टं तो ॥ अज्ज पिओ दट्ठब्वो चिरस्स होही मए त्ति काऊणं । न गणेमि परिस्समं ता चेडीए समं तर्हि घरिणि ॥ सतुरिय- पहाविराओ जण-निवहे भज्जमाण - वेगाओ । किच्छाहिं अणुपत्ता पियस्स वसहि ससंतीओ ॥ ८०३ For Private & Personal Use Only ७९६ ७९९ ८०० ८०४ ८०५ ८०६ तरंगलाला www.jainelibrary.org
SR No.004633
Book TitleSamkhitta Taramgavai Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages324
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Literature
File Size13 MB
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