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शालिभद्रजी
१ शालिभद्र के पिता देव बने । वे दिव्यखान पान, वस्त्र, जवाहरत की ९९ पेटी नित्य भेजते थे । किन्तु मातासे "श्रेणिक अपने मालिक राजा है" जानते ही विरक हुए ।
२ धन्नाजी स्नान करते हुए, अपनी पत्नी सुभद्रासे मेरा भाई शालिभद्र दीक्षार्थ १-१ पत्नी का हररोज त्याग करता है" जान कर बोले इसमे क्या ?" सुभद्राने कहा बोलन। सरल है करना कठिन ।” घन्नाजी चले दीक्षा लेने के लिए ।
३ शालिभद्र से घन्नाजी कहते है, वैराग्य है तो एक एक पत्नी क्या छोडना ? छला ? अभी अपन दोनो दीक्षा ले लें ।
४ शालिभद्र, धन्नाजी दानु प्रभु महावीर देव के पास सुनि हुए, कडी तपस्या की ।
५ शालिभद्रजी भूतपूर्व माता के वहाँ भिक्षा लेने गये है, परतु तपसे कुश बन हुए मुनि को न पहचानने से भिक्षा न मिली । तब लौटते पूर्वभव की माता ने उनको रास्ते में दही का दान दीया ।
६ वैभारगिरि पर अंतिम अनशन कर अनुत्तरवासी देव हुए। शोकातुर माता को श्रेणिक आश्वासन व धन्यवाद देता है ।
धन्य शालिभद्र महात्मा
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