________________ (4) शिशुपालवधम् :: एकोनविंशः सर्गः ] [563 अन्तकस्य पृथौ तत्र शयनीय इवाहवे / दशनव्यसनादीयुमत्कुणत्वं मतङ्गजाः // 71 / / ।अर्धभ्रमकः / / अ भी क म ति के ने द्धे 5 भी ता न न्द स्य ना श ने / क न त्स का म से ना के म न्द का म क म स्य ति / / 72 // | क | न त्स | का | से | ना | दधतोऽपि रणे भीममभीक्ष्णं भावमासुरम् / हताः परैरभिमुखाः सुरभूयमुपाययुः // 73 / / . 10 येनाङ्गमूहे व्रणवत्सरुवा परतोऽमरैः / / समत्वं स ययौ खड्गत्सरुचापरतोऽमरैः // 74 / / निपातितसुहृत्स्वामिपितृव्यभ्रातृमातुलम् / / पाणिनीयमिवालोकि धोरैस्तत्समराजिरम् / / 75 / / प्रभावि सिन्ध्वा सन्ध्याभ्रसाधिरतोयया / 15 हृते योद्धु जनः पांशी स दृधि रतो यया // 76 / / विदलत्पुष्कराकीर्णाः पतच्छङ्खकुलाकुलाः / तरत्पत्ररथा नद्य: प्रासर्परक्तवारिजाः // 77 //