________________ 105 लोड्लिनोऽर्चाभिभवे चाच्चाकर्तर्यपि / प्रलम्भे चात्. आलापयते // 29 // प्रलम्भेगृधिवञ्चर्णेरात्मने / गर्धयते // 30 // स्मिङः प्रयोक्तुः / स्वार्थे णिग आदात्मने च, विस्मापयते // 31 // बिभेतेर्भीष् च / भीषयते भाषयते // 32 // सिध्यतेरज्ञाने / आ:, साधयति // 33 // स्फायः स्फाव् / स्फावयति // 34 // शदेरगतौ शात् / शातयति // 35 // रुहः पो वा / रोपयति रोहयति // 36 / / ऊन् दुषो णौ / दूषयति // 37 // चित्ते वा / दूषयति दोषयति वा चित्तं / / 38 / / णौ मृगरमणे रञ्जनों लुक् / रजयति मृगः // 39 // चिस्फुरोर्नवाऽऽत् / चापयति चाययति स्फारयति स्फोरयति // 40 // घटादेह्रस्वो दीर्घस्तु निणम्परे / णौ वा, घटयति // 41 // कगेवनूजनेजष्क्नस्रञ्जः / कगयति जनयति // 42 // . 1 // 43 // अमोऽकम्यमिचमः / रमयति, कामयति // 44 // पर्यंपाभ्यां स्खदः / परिस्खदयति // 45 // शमोऽदर्शने णौ ह्रस्वो ज़िणम्परे तु वा दीर्घ, शमयति // 46 // ज्वलह्वलह्मलग्लास्नावनूवमनमोऽनुपसर्गस्य। वा. णौ ह्रस्वः, ज्वलयति नमयति नामयति // 47 // जिति घात् * हनः। घातयति // 48 / / णावज्ञाने गमुरिणिकोः / गमयति अध्यापयति // 49 //