________________ 101 अमास्त / षिग् बन्धने / ग्रही उपादाने, गृह्णाति, गृहीतः // 2 // व्यञ्जनाच्छ्नाहेरानः / गृहाण / / 3 / / गृह्णोऽपरोक्षायां दीर्घ इटः, ग्रहीता / पूग् पवने // 4 // प्वादेह स्वः शित्यत्यादौ, पुनाति / लूग् छेदने / धूग् कम्पे। स्तृग् आछादने / वृग् वरणे // इत्युभयपदं // ज्या वयोहानौ // 5 // दीर्घभवोऽन्त्यं य्वत जीनाति / ली श्लेषणे / श हिंसायां // 6 // ऋ शवप्रः परोक्षायां वा, शशरतु शश्रतुः / पृ पालनपूरणयोः / दृ विदारणे / म शब्दे / इति प्वादिः / ज्ञा ज्ञाने, जानाति / मन्थ विलोडने / ग्रन्थ संदर्भे / बन्ध बन्धने / अश. भोजने / मुष स्तेये / पुष पुष्टौ / / इति परस्मैपदं // वृङ्ग संभक्तौ // इत्यात्मनेपदं // इति ज्यादयः शितः / चुर स्तये // 1 // चुरादिभ्यो णिच् / चोरयति, णीत्यादिनां डे // 2 // उपान्त्यस्यासमानलोपिशास्वदितो डे णौ हृस्वः, अचूचुरत् // 3 // आमन्ताल्वाय्येत्नावय णेः / चोरयामास, चोर्यात् चोरयिता। टकु बन्धने, टङ्कयति टङ्कति, अनित्यो णिच् / अर्क स्तवने, आर्किकत् पूज पुजायां / रुज हिंसायां / लुट स्तेये / घट्ट सञ्चलने / ओरडु उत्क्षेपे / पोड गहने /