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________________ अरिहंत परमात्मा की आज्ञानुसार देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य का वहीवट करने वाले को क्या लाभ होता है उसका वर्णन द्रव्य सप्ततिका ग्रन्थ में इस तरह किया गया है - एवं नाउण जे दव्वं वुदि निंति सुसावया। ताण रिद्धी पवड्ढेई कित्ती सुखं बलं तहा। पुत्ता य हुँति से भत्ता सोंडीरा बुद्धिसंजुआ। सव्वलक्खणसंपुण्णा. सुसीला जणसम्मया।। जिणवयणवुढिकरं पभावगं नाणदंसणगुणाणं। वुटुंतो जिणदव्वं तित्थयरत्तं लहइ जीवो।। देव द्रव्यादि धर्म द्रव्य की व्यवस्था करने की विधि को जानकर जिनाज्ञा मुताबिक धर्म द्रव्य का वहीवट करने वाला सुश्रावक इस भव में तथा आगामी भव में धन सम्पत्ति आदि का पुण्यानुबन्धी वैभव प्राप्त करता है यशःकीर्ति को प्राप्त करता है। शारीरिक तथा मानसिक सुख को प्राप्त करता है। परोपकारादि के धर्म कार्य करने में उपयोगी शारीरिक बल प्राप्त करता है। बुद्धिशाली-सदाचारी भक्ति सम्पन्न-शूरवीर ऐसे पुत्रों की प्राप्ति होती है तथा उच्चकुल में जन्म, जगह जगह पर सत्कार सम्मान पूजा, उदारता, गंभीरता, विवेकिता, दुर्गति नाश, निरोगता, दीर्घायुष्कता, रूप सौंदर्य सौभाग्य, धर्माराधना करने का अवसर इत्यादि अनेक विध लाभों को प्राप्त करता
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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