________________ 63 रेचक जुलाब की औषधि देकर साधु के पेट की शुद्धि की तथा पातरे की गोबर और राख के लेप लगाकर तीन दिन धूप में रखकर और उसके बाद शुद्ध जल से साफ कर शुद्धि की। मुनि महात्मा ने भी अपने किये अतिचार पाप का प्रायश्चित कर लिया। . इस दृष्टान्त से यह बात सिद्ध होती है कि देवद्रव्य का भक्षण हलाहल विष है अनजान में भी वह हो जावे तो इस जन्म में भी आदमी को नुकसान किये बिना नहीं रहता तो जानबुझ के खाने वाले की क्या दशा होवे। इससे सब श्रावक को यही सीखने का है कि अधिक द्रव्य देकर भी देवद्रव्य की चीज़ अपने उपयोग में नहीं लेनी और परस्पर किसी को देनी भी नहीं। देवद्रव्य के भक्षणादि के बारे में शास्त्र के अन्दर बहुत से दृष्टान्त दिये गये हैं उसको वांचकर-सुनकर देवद्रव्य के भक्षणादि से बचने के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए।