________________ 38 को नहीं करनी चाहिए। कितने श्रावक सम्बन्ध के नाते देव द्रव्य का दुसरों से होते विनाश में उपेक्षा करते है। लेकिन यह उपेक्षा साधु की तरह उनके भी अनन्त संसार भटकने में कारण बनती हैं। देव द्रव्यादि का दुर्वहीवट नहीं करना चाहिये : - मंदिर उपाश्रयादि के जीर्णोद्धार या नव-निर्माण के कार्यों में देव द्रव्यादि के पैसे खर्चने में कर कसर करो यह बात अलग हैं लेकिन कंजुसी नहीं करनी चाहिए कार्य में कंजुसी करने से कार्य बिगड़ जाते हैं उससे देव द्रव्यादि द्रव्य का दुगुना खर्च करने में उतरना, पड़ता है उसी तरह मंदिरादि के लिए कोई चीज वस्तु लाने में भी कंजुसी नहीं करनी चाहिए। जिस तरह से कंजुसी नहीं करनी चाहिए उसी तरह ज्यादा तौर पर उदारता बता के देव द्रव्य का अधिक प्रमाण में खर्च न होवे उसकी भी कालजी रखना जरुरी है। जो ट्रस्टी वर्ग ज्यादा प्रमाण में उदारता बताकर मंदिरादि के कार्य में या मंदिरादि की चीज वस्तु खरीदने में देव द्रव्यादि का बेफाम खर्च करते हैं वे खरेखर दुर्वहीवट करने वाले हैं। आज जगह जगह पर यह चलता है कि संस्था के कार्यों में पैसे खर्चने में बहुत ही उदारता बताते है काम करने