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________________ या अग्र पूजा में जो द्रव्य आता है उसकी मालीकी गुरू की नही होती है अत: उसका उपभोग रजोहरणादि उपकरण की माफक अपने उपयोग में लेकर नही कर सकते उस कारण पूजा निमित से आया द्रव्य गुरू से भी पूज्य स्थान जिन मंदिर तथा जिन मूर्ति के क्षेत्र में (देव द्रव्य में) जाना चाहिए। गुरु पूजा निमितक द्रव्य गुरुवैयावच्च में लेवे तो वह लेने वाला और जिसकी वैयावच्च में यह द्रव्य का उपयोग होवे वे गुरू महाराज भी देव द्रव्य के भक्षण करने वाले बनने से दुर्गति के संसार में डुबने वाले बनते है। साम्प्रतिकव्यवहारेण तु यद् गुरून्यूछनादि साधारणं कृतं स्यात् तस्य श्रावकश्राविकाणामपणे। युक्तिरेव न दृश्यते शालादिकार्ये तु तद् व्यापार्यते श्रद्धैरिति। ____वर्तमान कालिंक व्यवहार से गुरू के पूजा में लुंछणा करके जो रुपैयादि द्रव्यं रखा जावे उस द्रव्य को साधारण द्रव्य गीना गया है लेकिन उसका उपयोग श्रावक श्रविका को देने में करने के लिये कोई युक्ति नहीं हैं। मात्र उपाश्रय पौषध शालादि धर्म स्थानों के उपयोग में ले सकते हैं। पूर्व काल में यह प्रणालीका थी इसलिए सेनप्रश्न में लुंछणे का द्रव्य साधारण में लेने का कहा है- परंन्तु वर्तमान काल में बहुततया लुंछणा करके गुरू पूजा करने की प्रणालिका प्रचलित नहीं है।
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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