________________ .. 18 महोत्सव महा पूजा प्रभावना विगेरे-गुरू को बड़ा (द्वाद्वशावर्त) वंदन. गुरू की अंग पूजा तथा प्रभावना प्रथम स्वस्तिक की रचना करके व्याख्यान श्रवण करना इत्यादि नियमोको चोमासे में विशेष करके ग्रहण करने चाहिए। इस तरीके से प्रश्नोत्तर समुच्चय आचार-प्रदीप -आचार दीनकर तथा श्राद्धविधि वगेरे ग्रन्थों में कथन किया गया है इनके अनुसार से श्री जिनेश्वर भगवान के जैसे गुरू की अंग पूजा तथा नवांग पूजा और अग्र पूजा प्रामाणिक रूप से सिद्ध होती है उसमें आया हुआ धन पूजा के सम्बन्ध से गौरवता वाले स्थान में लेना चाहिए याने गुरू से भी ज्यादा पूजनीय देवाधिदेव है उस स्थान मैं याने जिनमंदिर और जिनमूर्ति क्षेत्र के देव द्रव्य में गुरूपूजा के द्रव्य को लेना चाहिए। श्री सिद्धसेन दिवाकर वगेरे आचार्य भगवन्तो ने अपनी पूजा में आये धन को गुरू वैयावच्च वगेरे में न लेकर जिनमंदिरों के जिर्णोद्धारादि के कार्यों में उपयुक्त करवाया। उसकी साक्षि के यह शास्त्र पाठ है। धर्मलाभ इति प्रोक्ते दुरादुच्छ्रितपाणये सुरये सिद्धसेनाय ददौ कोटिं नराधिप इति इदं चाग्रपूजारूपं द्रव्यं तदानीं संघेन जीर्णोद्धारे तदाज्ञया व्यापरित। तथा हेमचन्द्राचार्याणां कुमारपालराजेन अष्टशतसुवर्णकमलैः प्रत्यहं पूजा कृताऽस्ति तथा जीवदेवसूरीणां पूजार्थं अर्द्ध लक्षद्रव्यं