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________________ विजय नेमिसूरी .. जयसिंह सूरि विजयसिद्धि सूरि आनंद सागर विजय वल्लभ सूरि विजयदान सूरि विजयनीति सूरी मुनि सागरचन्द विजय भूपेन्द्र सूरि अखिल भारत वर्षीय जैन श्वेतांबर मुनिसम्मेलने सर्वानुमते आ पट्टक रूपे नियमो कार्या छे तेनो असल पट्टक शेठ आणंदजी कल्याणजीनी पेढीने सोंप्यो छ। श्री राजनगर जैन संघ बंडा वीला ता. 10-4-34 . कस्तुरभाई मणीभाई स्वजा की होने से इसका निमितक हो - यह ठराव के अनुसार 14 स्वप्ना की बोली प्रभु के च्यवन कल्याणक निमितक होने से प्रभु निमित की ही बोली होने से इस बोली का द्रव्य भी देव द्रव्य में ही लेना चाहिए। साधारण द्रव्य की उपज करने के लिए चार आना. या आठ आना विगेरे स्वप्न की बोली के उपर जो सर्चार्ज लगाया जाता है और वह सर्चार्ज में आये धन को साधारण द्रव्य मान साधु आदि की भक्ति के उपयोग में लेते हैं वह बहुत ही अनुचित हैं उसमें देव द्रव्य की आमदानी में घाटा पड़ने से उसके भक्षण करने का और कराने का बड़ा भारी पाप लगता है। जैसे आदमी को 500 रुपैये स्वप्नाजी की बोली में खर्चना है तो वह बोली पर सर्चार्ज लगाया हो के न
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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