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________________ 13 श्राविका क्षेत्र का - द्रव्य वापर सकते है लेकिन साधु साध्वी के क्षेत्र का द्रव्य श्रावक श्राविका के क्षेत्र में नही वापर सकते। - च्वयन कल्याणक निमित्त जो चोदाह स्वपनाजी की बोली होती है। उसका द्रव्य भी देव द्रव्य में ही जाता है। उसको साधारण में ले जाना, साधारण रूप से उसका उपयोग करना ये शास्त्र और शास्त्र सम्मत परम्परा से तद्दन विरूद्ध है। उसमें भयंकर पाप है। जिन मंदिर का नव निर्माण तथा जीर्ण शीर्ण जिन मंदिरो का उद्धार तथा उसकी रक्षा सुव्यवस्थित रूप से होवे इसलिये पूर्वाचार्यों ने स्वप्न बोली का द्रव्य देव द्रव्य में ही जावे इस उद्देश से कई सालो के पूर्व में स्वप्न बोली का प्रारंभ किया। कोनसी साल में किया उसका पता नहीं है लेकिन यह शुभ प्रणालिका जब से शुरू हुई तब से सकल संघ में निर्णित उद्देश के रूप में ही मान्य रही है लेकिन इस शैके में कितनेक बिन श्रद्धालु ट्रस्टी वर्गने अपनी स्वार्थ और सुविधा के लिए स्वप्न बोली का द्रव्य कई गांवो में साधारण के अन्दर लेकर दुरूपयोग किया और इसमें शास्त्र और शास्त्र मान्य परंपरा को नहीं मानने वाले सुधारक आचार्यादि साधुओं ने खुल्ले आम सम्मति देने का घोर पाप किया। अभी भी कई गांवो में स्वप्न बोली का द्रव्य को साधारण में लेकर साधारण के कार्य में उपयोग करने का पाप चल रहा है। जहां
SR No.004477
Book TitleDevdravyadi Vyavastha Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansuri
PublisherParshwanath Jain Shwetambar Mandir Trust
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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