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________________ नता साथे भाव उल्लासना वृद्धि निमित्ते बने छे. पूर्व महा पुरुपोए प्रभु भक्ति. प्रसंगे जे मर्यादा अंकित करेली छे तेने अनुसरी यथाशक्ति. प्रमाद रहित आपणे पण आत्म कल्याणार्थे लाभ लेवो उचित छ... ..... स्वस्व शक्ति-साधन प्रमाणे अनेक प्रकारे प्रभु पूजा थई शके छे, तेमां अष्ट प्रकारी पूजा प्रतिदिन लक्ष पूर्वक करवा दरेक श्रद्धालु भाई बहेनोए उजमाळ रहेवू जोईए.. अष्टप्रकारी पूजा जेम अंतर लक्ष सहित करवामां आवे तेमज अधिक आत्महित रुप होवाथी ते बाबत अत्र प्रसंगोपात संक्षेपथी ब्यान करीए छीए.. . 1 जळपूजा-शुद्ध करेलां पवित्र कुंभादिकमां जयणा सहित गाळीने आणेला तीर्थनकादिकवडे स्नात्र अभिषेक (प्रक्षालन ) करतां हृदयमां भावq के प्रभु अभिषेकना प्रभावे अमारा अनादि कर्म-कश्मल दूर थई जाय. शुचि-पवित्र जळयी जयणासहित स्नान करी इन्द्रनी पेरे उत्तम वस्त्रालंकार धारण करी निर्मळ नीरनी धाराथी अंतर लक्षपूर्वक श्री जिनेश्वर प्रभुने न्हवरावतां उत्तम भावना योगे पोतेज पोताना आत्माने कर्म मळ र. हित करी शके छे... .. प्रभुने अभिषेक करी रह्या बाद घणांज सुंबाळां बारीक बस्त्री प्रभुना पवित्र गात्रने आदर सहिन लुंछी लेवु, त्यारपछी
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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