________________ (44) करीने लक्षमा राखवा योग्य छे. जो ए मुद्दानी वात लक्षमा राखी गमे ते आत्मसाधनना मार्गमा यथाशक्ति प्रवते तो तेथी अज्ञान, मिथ्यात्व, कषाय प्रमुख अतंर विकारो उपशम्या वगर रहेता नथी. परंतु उपर जगावेली प्रभुभाज्ञा तरफ दुर्लक्ष राखी, जो आपमतिथी के गतानुगतिकताथी क्रिया करवामां आवे तो तेवी अज्ञान क्रियाथी राग द्वेषादिक अंतर विकारो दूर थवाने बदले उलटा वधवानोज संभव क्यारे रहे छे. जेम लाभनो अर्थी व्यापारी गमे ते व्यापार करतां परिणामे पोताने नुकशान नहिं थतां थोडो घणो पण चोख्खो लाभज थाय तेवोज व्यापार करे छे तेम आत्मार्थी जनोए पण हरेक धर्म करणी करतां पोताना राग द्वेष मोह मिथ्यात्वादिक अंतर विकारो दूर थता जाय अने चित्त शुद्धि प्रमुख उत्तम लाभ मळतो जाय तेवीज रीते प्रवर्तवु उचित छे. कोइ प्रकारे विकारनी वृद्धि तो थवा न ज पामे तेवी पूरती काळजी हरेक प्रसंग राखवी जोइए. . ___चोथी भूमिका शुद्धि-वे प्रकारनी भूमिका शुद्धि कहेवाय छे. एक द्रव्य भूमिकाशुद्धि अने बीजी भाव भूमिकाशुद्धि. देव गुरुने जुहाराव जतां जयणा सहित विधि पूर्वक चैत्यद्वारमा के उपाश्रयमा पेसी दूरथी पण देव गुरुनुं दर्शन थतां ज अंजलिबध नमन करी प्रदक्षिणा दइ नजरे पडती आशातना टाळी देव गुरु सन्मुख अति नम्रपणे आवी पंचांग प्रणाम करती वखते उत्तरासंग प्रमुख वडे यथायोग्य भूमि प्रमार्जन करीनेज शुद्ध देव