SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (26) कर्तुं छे केश्राद्धो भोगाथ देवखं, मुक्तवा मूल्यं समाधिकम् // नाददेन्नैव दातव्यं, श्राद्धानां च परस्परम् // 1 // ___ " श्रावक देवने चडेली वस्तु, समान मूल्य मूकीने अथवा अधिक मूल्य मूकीने पण पोताना भोगने अर्थ ग्रहण करे नहीं तेमज बीजा श्रावकने परस्पर आपे पण नहीं." इति शुभंकरश्रेष्ठीनी कथा. ज्ञानद्रव्य अने साधारणद्रव्यनो विनाश करनाराने माटे पण नीचे जणावेली कर्मसार अने पुण्यसारनी कथा वाचवा योग्य छे ते नीचे प्रमाणे. कर्मसार अने पुण्यसारनी कथा. .. भोगपुर नामना नगरमां चोवीश कोटी सुवर्णनो स्वामी धनावह नामे श्रेष्ठी हतो. तेने धनवती नामे पत्नी हती. तेओने कर्मसार अने पुण्यसार नामे युगल पुत्र थया. ते ज्यारे आठ वर्षना थया त्यारे तेमने कोइ विद्वान् उपाध्यायनी पासे अभ्यास करवा मूक्या. पुण्यसारे सुखे सुखे सर्व विद्यान अध्ययन कयु, अने कर्मसारे घणो प्रयास को तथापि तेने एक अक्षर पण आवड्यो नहीं, तो वांचवा लखवानी तो वात ज शी करवी. ते पशु * साथे जन्मेल.
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy