________________ ( 74 ) सुमुणि सुसावगरूवो, मुक्खपहोरयणतिगसरूवो वा // सबजिणेहिं भणिओ, पंचविहो मुक्खविणओ वि // 325 // सुमुनिसुश्रावकरूपो-मोक्षपथो रत्नत्रिकस्वरूपो वा // सर्वजिनेन्द्रैर्भणितः, पञ्चविधो मोक्षविनयोऽपि // 325 // दसणनाणचरित्ते, तवेय तह ओवयारिए चेव / / एसो हु मुक्खविणओ, दुहा व गिहिमुणिकिरियरूवो // 326 // दर्शनज्ञानचारित्रं, तपश्च तथोपकारिता चैव / / एष हि मोक्षविनयो-द्विधा वा गृहिमुनिक्रियारूपः // 326 / / पुवपवित्ति जिणाणं, असंखकालो इहासि जा कुंथू // पासं जा संखिजो, वरिससहस्सं तु वीरस्स // 327 // पूर्वप्रवृत्तिर्जिनाना-मसंख्यकालोऽत्रासीदाकुन्थु / पार्श्वयावत्संख्येयो-वर्षसहस्रं तु वीरस्य // 327 // एमेव छेअकालो, नवरं वीरस्स वीससमसहसा // पासस्स नत्थि सोवा, सेससुअपवित्ति जा तित्थं // 328 // एवमेव च्छेदकालो-नवरं वीरस्य विंशतिः समाःसहस्राणि / पार्श्वस्य नास्ति स वा, शेषश्रुतप्रवृत्तिर्यावत्तीर्थम् // 328 // जम्माजम्मोजम्मा, सिवंसिवा जम्म मुक्खओ मुक्खो // इअ चउ जिणंतराइं, इत्थ चउत्थं तु नायवं // 329 // इह पन्न 1 तीस 2 दस 3 नव 4, कोडिलक्खा