________________ ( 47 ) पयडक्खरपयवक, सत्तपहाणं च कारगाइजुअं। ठविअविसेसमुआरं, अणेगजाई विचित्तं च // 206 // परमम्मविब्भमाई,-विलंबवुच्छेयखेअरहिअं च / अदुअंधम्मत्थजुयं, सलाहणिज्जं च चित्तकरं // 207 // सुमहार्थमव्याहत-मसंशयं तत्त्वनिष्ठितं शिष्टम् / प्रस्तावोचितप्रतिहत-परोत्तरं हृदयप्रीतिकरम् // 204 // अन्योऽन्य साभिकांक्ष-मभिजातमतिस्निग्धमधुरञ्च / खश्लाघापरनिंदा-वर्जितमप्रकीर्णप्रसरयुतञ्च // 205 // प्रकटाक्षरपदवाक्यं, सत्त्वप्रधानञ्चकारकादियुतम् / स्थापितविशेषमुदार-मनेकजातिविचित्रश्च // 206 // परमर्मविभ्रमादि-विलंबव्युच्छेदखेदरहितञ्च / अद्भुतधर्मार्थयुतं, श्लाघनीयञ्चचित्रकरम् // 207 // - किंकिल्लि 1 कुसुमवुट्ठी 2, दिवझुणि 3 चामरा 4 ऽऽसणाइं च 5 / भावलय 6 मेरि 7 छत्तं 8, जिणाण इअ पाडिहेराइं 8 // 208 // कङ्केल्लिःकुसुमवृष्टि-दिव्यध्वनिश्चामराणि च / . भावलयं भेरिः छत्रं, जिनानामिति प्रातिहार्याणि // 208 // तेवीसाए पढमे, बीए वीरस्स पुण समोसरणे / संघोपढमगणहरो, सुअंच तित्थं समुप्पन्नं // 209 //