________________ शास्त्रधिशारद-योगनिष्ठ-श्रीमद्-बुद्धिसागर-- सूरीश्वरगुरुस्मरणाष्टकम् / ( ललितभद्रिकावृत्तम् ) विबुधवन्दितं तत्ववेदिनं, वृषधुरन्धरं योगपारगम् / समयकोविदं सूरिशेखरं, स्मस्त सद्गुरुं बुद्धिसागरम् // 1 // क्षुभितदेहिनां संमृतेर्भयाद्-विशददेशनादायिनोद्धृतिः। अकृत येन तं मूरिशेखर, स्मरत्त सद्गुरुं बुद्धिसागरम् // 22 // विमलवाचनां यन्मुखाम्बुजा-च्छ्रवणगोचरीकृत्य भावतः / .. अमरतां गताः सूरिपुङ्गवं, स्परत तं गुरुं बुद्धिसागरम् // 3 // स्मरणमुत्तमं यस्य भूतले, सुखविधायक शान्तपावनम् / शरणमणिनां सूरिशेखरं, स्मरत तं गुरुं बुद्धिसागरम् // 4 // समतया मनोवृत्तिरभुताऽ-भवदखण्डित्ता यस्य कोपला। समजनेषु तं मूरिशेखरं, स्मरतः सद्गुरुं बुद्धिसागरम् // 5 // चयनमक्षयं शास्त्रसंपदा, विहितमुत्कटं येन धीमता। विकसति स्वयं सर्वदा क्षिती, स्मरत तं गुरुं बुद्धिसागरम्॥६॥ विजितकामनः शुद्धमानसः, सततमुन्नतश्रीसुधाकरः। / दलितदुर्मदः सूरिशेखरं, स्मरत तं गुरुं बुद्धिसागरम् // 7 //