________________ (13 ) अरिहंत 1 सिद्ध 2 पवयण 3, गुरु 4 थेर 5 बहुस्सुए 6 तबस्सीसु 7 / वच्छल्लयाइ एसिं, अभिक्खनाणोवओगे: 8 अ // 51 // दंसण 9 विणए 10 आव-स्सएअ 11 सील 12 वए 13 निरइआरो / खणलव 14 तव 15 चियाए 16, वेयावच्चे 17 समाही अ॥५२॥ अपुवनाणगहणं 18, सुअभत्ती 19 पवयणे पभावणया 20 / सेसेहिं फासिया पुण, एगं दो तिनि सव्वे वा // 53 // अर्हत्सिद्धप्रवचन-गुरुस्थविरबहुश्रुतंतपस्विषु / वत्सलतया हि तेषु, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगे च // 51 // दर्शनविनयावश्यके, शीलवते निरतिचारः / क्षणलवतपस्त्यागे, वैयावृत्त्ये समाधिश्च // 52 // अपूर्वज्ञानग्रहणं, श्रुतभक्तिः प्रवचने प्रभावनका / शेषैः स्पृष्टाः पुन-रेको द्वौ त्रयः सर्वे वा // 53 // सबढे 1 तह विजयं, 2 सत्तमगेविजयं 3 दुसु जयंतं 4-5 / नवमं 6 छटुं गेवि-अयं 7 तओ वेजयंतंच 8 // 54 आणय 9 पाणय 10 अच्चुअ 11, पाणय 12 सहसार 13 पाणयं 14 विजयं 15 / तिसु सबट्ठ 18 जयंतं 19, अवराइअ 20 पाणपंचेव 21 // 55 // अवराइअ 22 पाणयगं 23 पाणंयग 24 मिमेअ पुवभवसग्गा // धम्मस्स 15 मज्झिमाउं, सेसाणुक्कोसयं 23 तदिमं // 56 //