________________ ૬પ सयणा न लिंति विअणं, न विज्ज ताणं कुणंति ओसहिणा / मच्चूवग्घेण जिओ, निजइ जह हरिणपोअव्व // 670 // जह तरुअरंमि सउणा, विआलए दिसदिसागया वसिउं / जंति पहाए नवरं, न विज्जए के वि किंचि दिसि // 671 // घरतरुअरंमि सयणा, चउगइसंसारबहुदिसागंतु / वसिऊण पंच दिअहे, न नज्जए कत्थ वच्चंति ? // 672 // अत्थो घरे निअत्तइ, बंधवसत्थो मसाणभूमीए / एगो अ जाइ जीवो, न किंचि अत्थेण सयणेण // 673 // मच्चुकरहेण खज्जइ, जिअलोअवणं अपत्तफलकुसुमं / अनिवारिअपसरोधो, सदेवमणुआ सुरलोए // 674 // गन्भत्थं जोणिगयं, नीहरमाणं च तहय नीहरिअं / बालं परिवडूढंतं, डहरं तरुणपि मज्झवयं // 675 // तसरं पंडुरथेरं, मच्चुविवाएवि पिच्छए सव्वं / पायालेवि पवि, गिरीगुहकंतारमझमि // 676 // थलउअहिसिलसिंगे, आगासे वा 'भमंतयं जीवं / सुहिरं दुहिअं सरणं, रोरं मुक्खं विउ विरुअं // 677 // रुवं वाहि निरुअं, दुबलं बलिअंपि नेव परिहरइ / वणगयदवुव्व जलि, सयरायरपाणिसंघायं // 678 // अत्थेण न छुट्टिज्जइ, बाहुबलेण न मंततंतेहिं / ओसहमणिविज्जाहि अ, न धरा मच्चुस्स घडीआवि // 679 // जम्मजरामरणहया, सत्ता वहुरोगसोगसंतत्ता / हिंडंति भवसमुद्दे, दुक्खसहस्साई पावंता // 680 //