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________________ मा कीरउ पाणिवहो मा जंपह मूढ अलियवयणाई / मा हरह परधणाईमा परदारे मई कुणह // 628 // धम्मो अत्थो कामो अन्ने जे एवमाइया भावा / हरइ हरंतो जीयं अभयं दितो नरो देइ // 629 / / न य किंचि इहं लोए जीयाहिंतो जियाग दइययरं / तो अभयपयाणाओ न य अन्नं उत्तमं दाणं // 630 // सो दाया सो तवस्सी सो य सुही पंडिओ य सो चेव / जो सव्वसुक्खवीयं जीवदयं कुणइ खतिं च // 631 / / कि पढिएण सुएण व वक्खाणिएण काई किर तेण / जत्थ न नज्जइ एयं परस्स पीडा न कायव्वा // 632 // जो पहरइ जीवाणं पहरइ सो अत्तणो सरीरंमि.। अप्पाण वेरिओ सो दुक्खसहस्साण आर्भागी६.३३।। जं काणा खुज्जा चामणा य तह चेव रूवपरिहीणा / उप्पजंति अहन्ना भोगेहिं विवज्जिया पुरिसा // 634 // इय जं पाविति य दुहसयाई जणहिययसोगजणयाई / तं जीवदयाए विणा पावाण वियंभियं एयं // 635 / / जं नाम किंचि दुक्खं नारयतिरियाण तह य मणुयाणं / तं सव्वं पावेणं तम्हा पावं विवज्जेह // 636 / / सयणे धणे य तह परियणे य जो कुणइ सासया बुद्धी / अणुधावंति कुढेणं रोगा य जरा य मच्चू य // 637 / / नरए जिय ! दुस्सहवेयणाउ पत्ताउ जाओ पई मूढ ! / जइ ताओ सरसि इन्हि भत्तं पि न रुचए तुज्झ // 638 //
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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