________________ करचुलुअपाणिएणवि, अवसरदिन्नेण मुच्छिओ जिअइ। . पच्छा मुआण सुंदरि घडसयदिन्नेण किं तेण // 452 // दाणं दरिदस्स पहुस्स खन्ती, इच्छानिरोहो मणइ दियस्स / अज्जे वए इंदियनिग्गहो य. चत्तारि एआणि सुदुद्धराणि // 453 // न वि अत्थि न वि होही, पाएणं तिहुअणम्मि सो जीवो / जो जुब्वणमणुपत्तो, वियाररहिओ सया होइ // 454 // किविणाण धणं नागाण, फणमणी केसरा य सीहाणं / कुलवालिआण सील, कत्तो घिप्पन्ति अमयाणं // 455 // दुपरिच्चयधरणिधरो, जो न नियच्छेइ महियलं मणुओ। सो कूवदद्दरो इव, सारासारं न जाणेइ // 456 // नजति चित्तभावा, तह य विचित्ताउ देसभासाउ / अच्चन्भुयाइ बहुसो, दीसंति महिं भभंतेहिं // 457 / / अत्थो जसो य कित्ती, विज्जा विन्नाणयं पुरिसकारो। पाएण पाविज्जइ, पुरिसेण न अन्नदेसम्मि // 458 / / जणणी य जम्मभूमी, नियचरियं सयणदुज्जणविसेसो / मणइट्ठ माणुस्सं, पंच विदेसे वि हिययम्मि // 459 // दीसइ विविहचरितं, जाणिज्जइ सुयणदुज्जणविसेसो / धुत्तेहिं न वंचिज्जइ, हिंडिज्जइ तेण पुहवीए // 460 // वत्थुविसेसनिरिक्षण-वियक्खणो होइ सो नरो नूणं आहिंडिऊण दिवा बहुरयणा जेणिमा पुहवी // 461 // सा जाई तं च जलं, पत्तविसेसेण अंतरं गरु / अहिमुहपडिअं गरलं, सिप्पिउडे मुत्तियं होइ // 462 //