________________ 30 बुद्धि अचंडं भयए विणीयं, कुद्धं कुसीलं भयए अकित्ती / संभिन्नचित्तं भयए अलच्छी, सच्चे ठियं संभयए सिरी य॥३७६॥ कोहाहिभूआ न सुहं लहन्ति, माणंसिणो सोयपरा हवंति / मायाविणो हुंति परस्स पेस्सा, लुद्धा महिच्छा नरयं उवेंति // 377 // जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढ़ए / दोमासकयं कज्जं, कोडीए वि न निट्ठियं // 378 / / / / सुवन्नरुष्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया / नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि वि इच्छा हुं आगाससमा अणंतिया // 379 / / लुद्धा नरा अत्थपरा हवन्ति, मुद्धा नरा कामपरा हवन्ति / . बुद्धा नरा खंतिपरा हवन्ति, मिस्सा नरा तिन्नि वि आयरन्ति // 380 // कोहो विसं किं अमयं अहिंसा, माणो अरी किं हियमप्पमाओ / माया भयं किं सरणं तु सच्चं, लोहो दुहं किं सुहमाहु तुहि // 381 / / न धम्मवज्जा परमत्थि कज्जं, न पाणिहिंसा परमं अकज्जं / न पेम्मरागा परमोऽत्थि बंधो, न बोहिलाभा परमोऽत्थि लाभो // 382 // अभूसणो सोहइ बंभयारी अकिंचणो सोहइ दिक्खधारी / बुद्धीजुओ सोहइ राजमंती लञ्जाजुआ सोहइ एकपत्ती // 383 / / ते पण्डिया जे विरया विरोहे, ते साहुणो जे समयं चरंति। ते सत्तिणो जे न चलंति धम्मा, ते बन्धवा जे वसणे हवन्ति // 384 //