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________________ लाउअबीअं एक, नासइ भारं गुडस्स जह सहसा / तह गुणगणं असेसं, असञ्चवयणं पणासेइ // 345 // अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया / हिंसगं न मुसं बूया, नो वि अन्नं वयावए // 346 // एवमाइ उ जा भासा, एसकालम्मि संकिया / संपयाईयमढे वा, तं पि धीरो विवज्जए // 347 // अईयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पन्नमणागए / जमढं तु न जाणिज्जा, एवमेयं ति नो वए // 348 // भुयगोच अलियवाई, होइ अवीसासभायणं भुवणे / 'पावइ अकित्तिपसरं, जणयाण वि जणइ संतावं // 349 // सच्चेण फुरइ कित्ती, सच्चेण जणम्मि होइ वीसासो / सग्गापवग्गसुहसंपयाउ जायन्ति सच्चेण // 350 // ___उवएसो / ADVICE नियमिज्जइ नियजीहा, अधिआरियं नव किज्जए कम्मं / न कुलक्कमो य लुप्पइ, कुविओ किं कुणइ कलिकालो // 351 // अप्पा न पसंसिज्जइ, निदिज्जइ दुज्जणोवि न कयावि / बहु बहुसो न हसिज्जइ, लम्भइ गुरुअत्तणं तेण // 352 / / चवलं न चंकमिज्जइ, विरज्जइ नेव उन्भडो वेसो / वकं न पलोइज्जइ, रुट्ठा वि किं भणंति पिसुणा // 353 // सव्वस्स उवयरिज्जइ, न पम्हसिज्जइ परस्स उवयारो। विहलं अवलंबिज्जइ, उवएसो एस विउसाणं // 354 //
SR No.004473
Book TitlePaia Subhasiya Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyadarshanvijay
PublisherPadmavijay Ganivar Jain Granthmala
Publication Year1987
Total Pages124
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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