________________ 29 कव्वं / POETRY देहं रोगाइण्ण', जीय तडिविलसिय पिव अणिच्च / नवर कव्वगुणरसो, जाव य ससिसूरगहचकं // 284 / / मुत्ताहलं व कव्वं, सहावविमल सुवन्नसंघडियं / सोयारकण्गकुहरम्मि पाडियं पयडियं होइ // 285 / / अमिङ पाइयकव्वं पढिउं सोउं च जे न जाणन्ति / कामस्स तत्तवत्तं, कुगति ते कह न लज्जन्ति / / 286 // परूसो सकयबंधो, पाउअवधो उ होइ सुकुमालो / पुरिसमहिलाएंजेत्तिअमिहंतर तेत्तिअमिमाण // 287 // सक्कयकव्वस्सत्थं, जेण न याणन्ति मंदबुद्धीया / सव्वाणवि सुहबोहं, तेणेमं पायय रइयं // 288 / / ललिए महुरक्खरए, जुवईमणवल्लहे ससिंगारे / संते पाइअकव्वे, को सकइ सक्कय पढिउ // 289 / / पाइअकव्वम्मि रसो, जो जायइ तह व छेयभणिएहिं / उभयस्स व वासियसीयलस्स तित्तिं न वच्चामो // 290 // गूढत्थदेसिरहियं, सुललियबन्नहि विरइयं रम्म / पाययकव्व लोए, कस्स न हिययं सुहावेइ // 291 / / परउवयारपरेणं, सा भासा होइ एत्थ भणियव्वा / जायइ जीए विबोहो, सव्वाणवि बालमाईणं // 292 // पाइअकबुल्लावे, पडिवयण सकरण जो देइ / सो कुसुमसत्थर पत्थरेण अबुहा विणासेइ // 293 // सयलाओ इमं वाया, बिसन्ति एत्तो य ऐति वायाओ। एन्ति समुदंच्चिय ऐति सायराओ च्चिय जलाइ॥२९४॥